वक्त
क्या वक्त है क्या दौर आया है
क्या वक्त है क्या दौर आया है
सांसे खरीदी बेची जा रही है
लाशें कंधों पर नहीं रस्सी से खींची जा रहे हैं
आज हर दरवाज़ा बंद है हर गली सूनी है
आज हर इंसान मुजरिम है हर कोई खूनी है
रहना बंद दरवाजों में बन गई है मजबूरी
चेहरा ढका है आधा और नियत पूरी
मन मैला हो चाहे पर हांथ धोना है जरूरी
जब से यह कुदरत इतनी बेरहमी हो गई है
दो पल का वक्त मिलता था जिन्हें किस्मत से
मुलाकात उनकी आज फुर्सत से हो गई है
आंखों से दिखता नहीं
रुकने से रुकता नहीं
यह वह मर्द है जो किसी दवा के आगे झुकता नहीं
यह बिन बुलाए मेहमान की तरह आता है
बाजूंओ की ताकत को नहीं
यह तेरे अंदर की ताकत को आज़माता है।