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नसीब

नसीबों से मिलता है ऐसा ससुराल जहां सबसे बोलने की आज़ादी है
तो क्या हुआ अगर तुम्हारी तारीफ नहीं की जाती है

माना किया होगा तुमने दिल से हर काम
कोई ना कोई तो ज़रूर मिला होगा इनाम
कोई चूूडी़ ,सारी या मिला होगा कोई हार
तारीफ का क्या डालोगी तुम अचार

खुशनसीब हो जो तकलीफ में आराम करने को मिल जाता है
तो क्या हुआ अगर बेटा कहकर कोई सर नहीं सहलाता है

कितनी कमजोर हो इतना भी नहीं सह पाती हो
ज़रा ज़रा से दर्द में रोने लग जाती हो
दवा पानी कराते हैं और क्या चाहती हो
आंसू अपने क्या तुम खुद नहीं पो़छ पाती हो

अच्छे कर्म किए होंगे तुमने जो मनपसंद कपड़े पहन पाती हो
तो क्या हुआ थोड़ा सुन लेती हो और चुप रह जाती हो

चूड़ी बिंदी लगा लोगी तो क्या बिगड़ जाएगा
सबकी इज्ज़त करती हो यह कैसे नज़र आएगा
अच्छी बहू हो ये तभी समझ आएगा
जब तुम्हारी मांग का सिंदूर नज़र आएग

माना हंसती हो ,हंसाती हो ,हर बात पर मुस्कुराती हो
छोटी मोटी बातें भूल जाती हो, कभी कभी गुस्सा भी हो जाती हो और फिर खुद ही मान भी जाती हो
लेकिन घर की बहू हो यह क्यों भूल जाती हो
बच्ची नहीं हो अब मायका भूल जाओ
जो मिला है उसी में खुश रहना सीख जाओ

Author

info@thesoulpoetry.com

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वक्त

July 8, 2021