आदमी अक्सर छुप छुप कर है रोते
औरतों के दुख तो कभी ख़तम नहीं होते
आदमी अक्सर छुप छुप कर है रोते
वो बेटा था तो एक ही था
पती बन गया तो दो हिस्सो मे बट गया
रिश्ते निभाना उसे भी आता है
बस मां और पत्नी में किसी एक को चुन नहीं पाता है
सही गलत वो भी समझ जाता है
लेकिन क्या करें उसे तो लड़ना भी नहीं आता है
अपने जज़्बातों को छुपाता है
दुखी होता है पर किसी को नहीं बताता है
अपनी तकलीफ में अकेला रह जाता है
क्योंकि परेशानियों का चिट्ठा पहले से ही उसके हाथों पर रख दिया जाता है
अपनी कहते कहते रुक जाता है
दिन भर खट के वो भी थक जाता है
सुनता है सबकी अपनी कुछ नहीं बताता है
काम वो भी बहुत करता है लेकिन कभी नहीं जताता है
मुस्कुराहट के पीछे दर्द छुपाता है
बोलता कम ही है कहानियां नहीं सुनाता है
नखरे लाख हो बीवी के वह हंस के उठाता है
मां भी अगर रूठ जाए तो उसे बड़े प्यार से मनाता है
हर घर में अक्सर होती है टकरार
पत्नी का गुस्सा जायज़ हर बार
और पति का गुस्सा है घोर अत्याचार
दुनिया की दोगली सोच का बना है वो शिकार
उसे तो रोने का भी नहीं है अधिकार
वो अच्छा बेटा कैसे बन पाएगा
जब तक मां के सामने बीवी की फटकार नहीं लगाएगा
पति भी तो अच्छा तभी कहलाएगा
जब बीवी के लिए मां से लड़ जाएगा
वो कभी रातों में बेफिक्र नहीं सोते
आदमी अक्सर छुप-छुपकर है रोते ।